विश्व का दशहरी आम का पहला पेड़
इस समय आम का सीजन है मित्रो मगर आम का मौसम रहे या न रहे ,किन्तु जब भी आपको सफेदा ,हापूस ,नीलम ,चौसा ,दशहरी आदि आम की प्रजातियों का स्मरण आता है तब आपकी रसना बेमौसम भी आम के रसास्वाद से सराबोर होने लगती है / आम आदमी हो या आमदार या उससे भी ख़ास आदमी आम सब में एक सी ललक पैदा करता है / इसीलिए तो आम को फलों का राजा कहा जाता है / आम की प्रजातियों में दशहरी आम बेजोड़ है /क्या आप जानते हैं कि दशहरी आम कि उत्त्पत्ति कैअसे हुई ? आइये आज हम आपको दशहरी आम के प्रादुर्भाव कि कहानी सुनाते हैं / लखनऊ से पश्चिम हरदोई मार्ग पर नगर से तेरह किलोमीटर दूर काकोरी शहीद स्मारक से उत्तर रेलवे की हावडा-अमृतसर लाइन से उस पार डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर दशहरी गाँव है / इस गाँव में ही दो सदियों पुराना आम का पेड़ है जो संसार में दशहरी आम का पहला पेड़ होने का गौरव रखता है / लखनऊ में दशहरी गाँव के ताल्लुकेदारों की दशहरी कोठी है जो झाऊ लाल पुल और कचहरी रोड के बीच में है और दशहरी हॉउस के नाम से प्रसिद्द है / दशहरी हॉउस के वर्तमान नवाब सैयद असर जैदी के अनुसार दशहरी गाँव सहित उसके आसपास का इलाका भरों-राजभरों की संपत्ति था / उन्हीं भर्रो -राज भरों से नवाब के पूर्वजों ने इस पूरे इलाके को खरीद लिया था / इसमें वह दशहरी गाँव भी शामिल था जिसका नामकरण दशहरी आम के जनक दशरथ राजभर या दशरथी राजभर के नाम पर हुआ था / दशरथ नाम का राजभर -भर जाति का किसान था / उसके आम के अपने बाग़ थे / एक बार वह पके आमों को तोड़कर बेचने के लिए तीन आदमियों के साथ जा रहा था / चारों व्यक्ति पके आमों से भरी टोकनियाँ सिर पर रखे जा रहे थे / अचानक आंधी तूफ़ान के साथ तेज वर्षा होने लगी / सिर छुपाने के लिए कहीं सुरक्षित स्थान भी नहीं था / शीघ्र ही उन चारों ने आमों से भरी टोकानियाँ एक साथ एक ही जगह पर उड़ेल कर ऊपर से टोकनी औंधा कर रख दिया / किसी तरह प्राण बचाकर घर पहुंचे / लगातार तेरह दिनों तक वर्षा होती रही / सम्पूर्ण आम सड गए / इन सड़े आमों के ढेर से एक एक करके सभी अंकुरण जमने पर एक साथ निकले / अंकुरण का प्रान्कुरण तथा मूलांकुर संयुक्त रूप से निकला / हवा ,पानी और प्रकाश तीनों के आधार से एक ही विशाल बृक्ष तैयार हुआ / कई किस्मों के आमों के सत्व का मिश्रण एक ही बृक्ष के रूप में हो गया / जहाँ पर वह बृक्ष तैयार हुआ संयोग वश वह भूमि भी दशरथ राजभर के अधिकार में थी / दशरथ राजभर ने स्वयं उस बृक्ष की देखभाल की / समयानुसार आम के उस बृक्ष पर फल आये / आम की मिठास और फलों के आकार की चर्चा सर्वत्र फैलने लगी / अब यह आम भोजों -दावतों में उपहार, तोहफों के रूप में दिया जाने लगा / उस क्षेत्र के ताल्लुकेदारों को भी आम तोहफे के रूप में भेजा गया / कौन लाया यह आम ? राजमहल में चर्चा होने लगी / अरे ! भई ! दशरथी राजभर -भर लाया यह आम / इस प्रकार यह आम दशरथी के नाम से जाना जाने लगा / और फिर दशरथी से आगे निकलता हुआ यह आम दशहरी कहलाने लगा / आजकल इस आम को विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है /यद्यपि इस आम के मिठास और आकार में अब antar होने लगा है किन्तु आज भी इसकी प्रसिद्धि वैसी ही बनी हुई है जैसी की दशरथी राजभर के समय थी / ( पुस्तक -राजभर शोध लेख संग्रह ,लेखक -आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ''राजगुरु'' ,पृष्ठ १६ ,१७ संस्करण २०१० / मेरा यह लेख भारत की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में छप चुका है /)
इस समय आम का सीजन है मित्रो मगर आम का मौसम रहे या न रहे ,किन्तु जब भी आपको सफेदा ,हापूस ,नीलम ,चौसा ,दशहरी आदि आम की प्रजातियों का स्मरण आता है तब आपकी रसना बेमौसम भी आम के रसास्वाद से सराबोर होने लगती है / आम आदमी हो या आमदार या उससे भी ख़ास आदमी आम सब में एक सी ललक पैदा करता है / इसीलिए तो आम को फलों का राजा कहा जाता है / आम की प्रजातियों में दशहरी आम बेजोड़ है /क्या आप जानते हैं कि दशहरी आम कि उत्त्पत्ति कैअसे हुई ? आइये आज हम आपको दशहरी आम के प्रादुर्भाव कि कहानी सुनाते हैं / लखनऊ से पश्चिम हरदोई मार्ग पर नगर से तेरह किलोमीटर दूर काकोरी शहीद स्मारक से उत्तर रेलवे की हावडा-अमृतसर लाइन से उस पार डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर दशहरी गाँव है / इस गाँव में ही दो सदियों पुराना आम का पेड़ है जो संसार में दशहरी आम का पहला पेड़ होने का गौरव रखता है / लखनऊ में दशहरी गाँव के ताल्लुकेदारों की दशहरी कोठी है जो झाऊ लाल पुल और कचहरी रोड के बीच में है और दशहरी हॉउस के नाम से प्रसिद्द है / दशहरी हॉउस के वर्तमान नवाब सैयद असर जैदी के अनुसार दशहरी गाँव सहित उसके आसपास का इलाका भरों-राजभरों की संपत्ति था / उन्हीं भर्रो -राज भरों से नवाब के पूर्वजों ने इस पूरे इलाके को खरीद लिया था / इसमें वह दशहरी गाँव भी शामिल था जिसका नामकरण दशहरी आम के जनक दशरथ राजभर या दशरथी राजभर के नाम पर हुआ था / दशरथ नाम का राजभर -भर जाति का किसान था / उसके आम के अपने बाग़ थे / एक बार वह पके आमों को तोड़कर बेचने के लिए तीन आदमियों के साथ जा रहा था / चारों व्यक्ति पके आमों से भरी टोकनियाँ सिर पर रखे जा रहे थे / अचानक आंधी तूफ़ान के साथ तेज वर्षा होने लगी / सिर छुपाने के लिए कहीं सुरक्षित स्थान भी नहीं था / शीघ्र ही उन चारों ने आमों से भरी टोकानियाँ एक साथ एक ही जगह पर उड़ेल कर ऊपर से टोकनी औंधा कर रख दिया / किसी तरह प्राण बचाकर घर पहुंचे / लगातार तेरह दिनों तक वर्षा होती रही / सम्पूर्ण आम सड गए / इन सड़े आमों के ढेर से एक एक करके सभी अंकुरण जमने पर एक साथ निकले / अंकुरण का प्रान्कुरण तथा मूलांकुर संयुक्त रूप से निकला / हवा ,पानी और प्रकाश तीनों के आधार से एक ही विशाल बृक्ष तैयार हुआ / कई किस्मों के आमों के सत्व का मिश्रण एक ही बृक्ष के रूप में हो गया / जहाँ पर वह बृक्ष तैयार हुआ संयोग वश वह भूमि भी दशरथ राजभर के अधिकार में थी / दशरथ राजभर ने स्वयं उस बृक्ष की देखभाल की / समयानुसार आम के उस बृक्ष पर फल आये / आम की मिठास और फलों के आकार की चर्चा सर्वत्र फैलने लगी / अब यह आम भोजों -दावतों में उपहार, तोहफों के रूप में दिया जाने लगा / उस क्षेत्र के ताल्लुकेदारों को भी आम तोहफे के रूप में भेजा गया / कौन लाया यह आम ? राजमहल में चर्चा होने लगी / अरे ! भई ! दशरथी राजभर -भर लाया यह आम / इस प्रकार यह आम दशरथी के नाम से जाना जाने लगा / और फिर दशरथी से आगे निकलता हुआ यह आम दशहरी कहलाने लगा / आजकल इस आम को विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है /यद्यपि इस आम के मिठास और आकार में अब antar होने लगा है किन्तु आज भी इसकी प्रसिद्धि वैसी ही बनी हुई है जैसी की दशरथी राजभर के समय थी / ( पुस्तक -राजभर शोध लेख संग्रह ,लेखक -आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ''राजगुरु'' ,पृष्ठ १६ ,१७ संस्करण २०१० / मेरा यह लेख भारत की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में छप चुका है /)
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