गुरुवार, 16 जून 2016

भरजाति  के उपनाम

1,  अनेक जिलो मे अनेक उपनामो से पुकारे जाते है और विभिन्नता से वे बोर,भोर,भोवरी,बैरिया और भैरिया,बरिया,बौरी,भैराय और अन्य उपनामो से जाने जाते है,
2 ,  मै उदघृत कर चुका हूॅ कि भवर (भावर) या भर के बहुत से प्रदेश है,
3,   वे राजभर,भरत और भरपतवा नाम से भी जाने जाते है,
4 ,  साधारण भरो के लिए खुॅटैत तथा विशिष्ट राजभरों के लिए पटैत उपनाम कहे गये है,
5 ,  "This race, variously known by the terms Rajbhar,Bharat, Bharpatwa and Bhar..........
 -HinduTribes and Castes,Vol, 1,Page 358
-By M, A, Sherring
6 ,  "Rajbhar,Rajjbhar, Rajwar  &  Bhar,"
-Dr.Babasaheb Ambedhar writing and speeches, Vol, 1, Appendix 9, page 199. Education Deportment, Govemment of Maharashtra 1990.
     राजभर, राज्जभर, राजवर और भर
7, अन्तिम जनगणना,भरो को, भारद्धाज, कनौजिया (जाति आधारित रिपोर्ट 1931 के अनुसार कनौजिया भी भर थे कितुं बाद मे यह नाम धोबीयो ने अपना लिया
भर / राजभर साम्राज्य पुस्तक के पृष्ठ 276 देखे) और राजभर कि मुख्य उपजाति से संबन्धित बताती है,
8,  "  1972, और वरिजनल पब्लिकसेयर और 1988, पटउदी हाऊस दरायगंज दिल्ली -6
मे सबसे पहले इनका उल्लेख टालमी, वाल्यूम Vll, खण्ड  2 , पृष्ट 20 मे पाया जाता है,जहाॅ
इन्हे बार्रहाई या बढ़ई कहा जाता है,
9,  कम से कम मै जानता है कि आर्यो द्धारा देश कै मूल जातियों का  'बर् र' कहकर उपहास किया गया है और उनका उपनाम बर्बर या बारबौरियन(जंगली,देहाली,गॅवार,असभ्य, अशिष्ट) दिया गया है, जिसमे  से हम इस निष्कर्ष पर पहुॅच सकते हैं कि कोई भी शब्द जो बरीड से बना हो, निश्चित रूप से र  स्वदेशी है,
10,  साधारणतया शब्द विन्यास   "भर"   नाम से है,   "भर्र" उच्चारण मे अधिक उपयुक्त जान पढ़ता है.
 11,  भर  - कृषिकार्यो तथा मजदूरों कि अनार्य जाति.
 12,   - वही  ,  पृष्ट 353
       राजभर -  भरों की उपजाति
 13,    राज या राय - राजा, एक राजा.यह शब्द कुछ जमींदार वर्ग की जातियों की पदवी दर्शाता है, जैसे की राजगोंड़, राजकोरकू, राजखोड़ तथा राजभर
 14,  -  वही, पृष्ट 401 ,
राजभर - (एक भूस्वामी भर), राज्जहर के लिए एक ही अर्थ का शब्द
 15,   -  वही, पृष्ट 349
  भरिया - (भर जाति से), एक जाति  ;......
 16,    भारशिव - भर का परिनिष्ठित संस्कृत नाम भारशिव है, भारशिव वस्तुतः एक जाति नही ; बल्कि उपाधि थी. -  कुवेर टाइम्स लखनऊ. 26 जुलाई 1997
 17,  सभी मे सबसे शक्तिशाली, आजमगढ़ के भर अपनी बिरादरी के अन्दर विवाह संबन्ध स्थापित न करके दो भागों - पटैत तथा खुटैत मे विभक्त हो गये, लेकिन वे परिवार जो सूअर पालन नही करते थे उनसे जो सूअर - पालन करते थे, विवाह - सम्बंध स्थापित नही करते हैं, इसलिए एक ही बिरादरी में विवाह सम्बंध स्थापित करने वाले  भी अब एक ही नाम से संबन्ध नही रखते हैं जो दो अन्तर्विवाहीय भाग हो गये,
               अनेकानेक उपनामों से भर जाति की वास्तविक पहचान सनै - सनै विलुप्त होती चली जा रही है, राजपुत युग मे भर जाति की टुटन  अधिक बढ़ गयी, अनेक भर सरदार राजपूत कहलाने लगे, बीहड़ इलाकों के भर लोग उसी नाम से बने रहे, परशुराम ने प्राचीन क्षत्रियों का विनास कर दिया, आज के अनेक राजपूत भर जाति से रूपान्तरित होकर बने है,यदि राजपूतों के अनेक नृवंशो का अध्ययन किया जाय तो उनकी अधिक तर मूल उत्पत्ती भरों से ही संबंध जोड़ती है, भर जाति का कोई गोत्र नही है क्योंकि यह यहाॅ की मूल निवासी जाति हैं, प्राचीन प्रथा थी कि दास लोग अपने स्वामी का गोत्रादि भक्तिवस धारण  कर लेते थे, तुलसीदास ने कवितावली,रामायण -  उत्तरकांड में इसे इस प्रकार लिखा हैं,  "अति ही अयाने उपखाने नहिं बूझै लोग,साहेब के गोत्र होते हैं,  गुलाम को. " विष्णु रहस्य का वचन है -
                  आर्ष गोत्रंतु विप्राणां तदन्येषा गुरोरिव साखाभेदादगरोमेद्राद गोपीदीनांतु, सर्वशः.
अर्थ -   "ब्राम्हणों का अर्थ गोत्र  होता है और  क्षत्रियादि दूसरे वर्णो का गोत्र साखा और गुरू के भेद गुरू का गोत्र  होता है,  " ऋषिओ के नाम पर  गोत्र खोजकर हम  अपने वंश को गाली नही दे सकते

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