भारत का इतिहास [६००-१२०० ई ,] के पृष्ठ ३८५ -भारतीय इतिहास का पूर्व मध्य युग में सत्यकेतु विद्यालंकार कहते हैं कि चंदेल ,गहडवाल आदि कतिपय राजपूत वंशों के विषय में यह मत प्रतिपादित किया गया है कि वे गोंड ,भर आदि उन जनजातियों के वंशज थे ,जो भारत की मूल निवासी थीं / कुछ लोगों का मत है कि भारत का नाम भी मूल जाती भर के कारण पड़ा / पंडित राहुल सांकृत्यायन ने इश भावना को सप्तमी के बच्चे नामक पुस्तक की एक कहानी में व्यक्त किया है / अपनी पुस्तक साम्यवाद ही क्यों ? के पेज ५ [मनुष्य की उत्पत्ति और विकास ] में राहुल जी भरों को आदि जातियों में मानते हैं / डा , नर्मदेश्वर प्रसाद जी ने जिन भारशिव नागों का उल्लेख किया है ,इनका रोचक इतिहास रहा है / वे पहले केवल भर थे /मिस्टर फ्लीट ने अपनी पुस्तक गुप्त इन्स्क्रिप्सन में वाकाटक लेखकों के एक ताम्रपत्र का हवाला देते हुए ,लिखा है कि इन भारशिवों ने जिनके राजवंश का प्रारंभ इस प्रकार हुआ था --शिवलिंग का भार अपने कन्धों पर उठा कर शिव को भलीभांति परितुष्ट किया था / उनका अभिषेक भागीरथी के पवित्र जल से किया गया / उन्होंने अपने पराक्रम से राज्य प्राप्त करके दस अश्वमेध यज्ञों द्वारा अवभृथ स्नान किया था / उक्त ताम्रपत्र से स्पष्ट है कि शिवलिंग का भार अपने कन्धों पर उठाने से इस वंश का नाम भारशिव पड़ा / भारशिव /राजभरों के बारे में दिनांक १७-१०-१९७७ के स्वतंत्र भारत के अपने लेख भारशिव और राजभर में अमरबहादुर सिंह अमरेश लिखते हैं कि कोई इन्हें भारत का मूल निवासी , कोई भरवतिया जाती के अहीरों तथा कोई राजभरों से सम्बन्ध जोड़ता है / वे आगे कहते हैं कि मेरा अपना विश्वास है कि ये भारशिव राजभर ही हैं जो आज अछूतों के स्टार के समझे जाते हैं / ये लोग अपनी जाती के साथ अपने पुराने राजमोह को अब तक नहीं छोड़ पाए और गाजीपुर। बनारस ,जौनपुर तथा चौबीस परगना के भर अपने को राजभर कहते हैं / ये नागवंशी हैं / ये बहुत बहादुर तथा लड़ाकू होते थे / इनका प्रारंभिक जीवन धार्मिक , सदाचारी तथा सादा था /बाद में वे मदिरा पीने लगे / इसके लिए वे हौज बनवाते थे / वही प्रवृत्ति इनके विनाश का कारण बनी / कालांतर में ये अत्यंत विलासी भी हो गए / जैसा कि ऊपर बताया गया है , भर नामक एक वीर जाति से चन्देल राजपूतों की उत्त्पत्ति हुई / १६ वीं सदी तक ये राजपूत मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड पर राज्य करते रहे / कुछ विद्वानों के मतानुसार भर जाति के लोग जो कि कौशाम्बी ,प्रयाग तथा काशी के दक्षिणी भाग में स्थित थे , चंदेलवंशी राजपूत कहलाये / शेष राज्यों के ज्यों के त्यों रह गए / उत्तरी भारत के अधिकांश भाग पर उनका शासन था / भरों के विषय में निम्न मत भी प्रासंगिक हैं ----; [१] -मिस्टर थामसन कहते हैं कि वे अवध के वीर एवं कुशल शासक थे / [२] -सरस्वती के संपादक पंडित देवीशंकर शुक्ल ने भरों को भारशिवों का वंशधर माना है / [३] -बी,ए , स्मिथ ने अपनी पुस्तक अरली हिस्ट्री आफ इंडिया में भर जाति को प्राचीन क्षत्रिय माना है / [४] -के,पी , जायसवाल का मत है कि भर नागों तथा भारशिवों के वंशज हैं / [५] -डा,हेनरी इलियट भर जाति को अत्यंत वीर ,पराक्रमी तथा उच्च वर्गीय मानते हैं / [६] - डा, बी,ए , मानते हैं कि भर राजा कशी ,पाटलिपुत्र तथा अवध के कुशल शासक थे /बिहार शब्द भर शासक द्वारा ही दिया गया है / [७]- जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी का कथन है कि ११९४ ईस्वी में भर सरदारों ने अवध पर अपना साम्राज्य स्थापित किया तथा पचास वर्षों तक कुशलता पूर्वक राज्य किया / ab बहराइच के भर शासक सुहेलदेव पर लौटते हैं जिन्हें विहिप पासी शासक बता रही है / भर राजा सुहेलदेव का जन्म १००९ ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन श्रावस्ती में हुआ था / इनके पिता बिहारीमल १०२० ईस्वी में श्रावस्ती पर शासन करते थे / बिहारीमल के चार पुत्र सुहेलदेव , रूद्रमल ,बागमल व सहरमल थे / सुहेलदेव किशोरावस्था से ही पिता के साथ आखेट के लिए जाया करते थे /उनकी प्रतिभा और शौर्य देख कर उनके पिता बिहारीमल अत्यंत प्रसन्न होते थे / इसलिए १८ वर्ष की उम्र में ही १०२७ ईस्वी में बिहारीमल ने उन्हें श्रावस्ती का सम्राट घोषित किया। शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने हेतु बिहारीमल ने चन्देलवंश के गंड युवराज विद्याधर को शासन का मंत्री चुना /सुहेलदेव के अंगरक्षकों में सामंत जगमनी, बलभद्र देव , तथा उनके अनुज रूद्र मल [ भूराय देव ] Fks/ शेष २१ सामंत गण उनकी शासन व्यवस्था के अंग थे / सुहेलदेव का साम्राज्य उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में कौशाम्बी तक तथा पूरब में वैशाली से लेकर पश्चिम में गढ़वाल तक फैला था / भूरायचा का सामंत सुहेलदेव का छोटा भाई भूराय देव था , जिसने अपने नाम पर भूरायचा दुर्ग इसका नाम रखा था / श्री देवकीप्रसाद अपनी पुस्तक राजा सुहेलदेव में लिखते हैं कि भूरायचा से भरराईच और भरराईच से बहराइच बन गया / प्रोफ़ेसर के,एल,श्रीवास्तव के ग्रन्थ बहराइच जनपद का खोजपूर्ण इतिहास के पृष्ठ ६१-६२ पर अंकित है --इस जिले की स्थानीय रीति रिवाजों में सुहेलदेव पाए जाते हैं / बहराइच के इतिहास की घटनाओं की गणना की तिथि हमें सुहेलदेव के शासन काल से मिलती है / अमृतलाल नागर ग़दर के फूल के पृष्ठ ८९ में बहराइच के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि बहराइच का शद्ध नाम भरराइच है / भरों की पहेली आजतक किसी इतिहासकार ने नहीं सुलझाई ,जबकि बहराइच का ऐतिहासिक महत्त्व भरों ने खूब बढाया / वे आगे लिखते हैं कि ११ वीं शताब्दी में सैयद सालार मसूद नामक मुस्लिम फ़क़ीर ने भारत पर आक्रमण किया / यह सुल्तान महमूद गजनवी का भांजा माना जाता है / जेहाद यानी धर्म युद्ध की भावना से इस देश को खूब रौंदा था / अवध में मैं जानता हूँ कि सैयद सालार कई पीढ़ियों के लिए आतंक का प्रतीक बन गया था। उसने अयोध्या सहित अनेक स्थानों का नाश किया / अंत में सन १०३४ ईस्वी में उसने भर राजा सुहेल देव के हाथों मृत्यु पाई / सेंसेस आफ इंडिया १८९१ के वाल्यूम १६ पार्ट १ के पेज २१७ में डी ,सी, बैली ने लिखा है कि - यह कहने के लिए अधिक होगा कि पूजा के केंद्र में सैयद सालार मसौदी गाजी , महमूद सबक्ताजिन की बहन का पुत्र जो कि १०३३ में गोंडा के भर , थारू या राजपूत राजा द्वारा नेतृत्व करते समय बहराइच के समीप हराया तथा मारा गया था / भर शासक सुहेलदेव की मृत्यु १०७७ ईस्वी में किसी बीमारी के फलस्वरूप हुई /
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