गुरुवार, 7 जुलाई 2016

 बीजेपी उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए असम की तर्ज पर इस सूबे में भी सामाजिक समीकरणों को साधने में जुट गयी है। भाजपा राजभर के मतों को अपने पाले में करने के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भासपा के साथ गठबंधन करेगी।
 भासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बताया कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के निमंत्रण पर उनकी 17 जून को दिल्ली में उनसे बातचीत हुई थी। भाजपा से उनके दल का गठजोड़ तय हो गया है। भाजपा उनके दल को 20 सीट देने पर सहमत हो गयी है।

उन्होंने बताया कि आगामी नौ जुलाई को मऊ में अति दलित और अति पिछड़े वर्ग की पंचायत होगी, जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी भाग लेंगे। इसी पंचायत में भाजपा और भासपा गठबंधन की औपचारिक घोषणा होगी। राजभर ने बताया कि भारतीय समाज पार्टी जिन 20 सीट पर चुनाव लड़ेगी उन्हें भी चिह्नित कर लिया गया है। इसका खुलासा बाद में एक रणनीति के तहत होगा।

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

संदेश
विनम्र निवेदन
हमें अपार हर्ष के साथ आप सभी
राजभर भाइयो को बताने में ख़ुशी महसूस हो रही है,कि हमारे समाज के
परम आदर्श, आदरणीय,एवम् पूजनीय माननीय "श्रीमान आचार्य शिवप्रसाद सिंह राजभर "राजगुरु" जी को "जीवन गौरव"पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा,अतः आप
सभी स्वजातीय,सम्मानित  लोगो से विनती है अधिक से अधिक संख्या में पहुँचकर इस कार्यक्रम को सफल बनाये।
दिनांक :- 17 जुलाई 2016
समय :- 2 बजे से 7 बजे तक ।
स्थान :- गुरुद्वारा हॉल,मरोल पाइप
लाइन,अँधेरी (ईस्ट)मुम्बई-59

सोमवार, 4 जुलाई 2016

बस्ती

किंवदंतियों के अनुसार बस्ती अवध का हिस्सा था जो जंगलो से घिरा था ! ऐसा माना जाता है कि इसके अधिकतर भूभाग पर भर का राज था ! इसका कोई निश्चित प्रमाण प्रारंभिक इतिहास में उपलब्ध नही है! जिले में एक व्यापक भर राज्य के सबूत केवल प्राचीन ईंट लोकप्रिय इमारतों के खंडहर से जाना जा सकता है !

रविवार, 3 जुलाई 2016

गाजीपुर और राजभर इतिहास

मि. शोरिंग साहब का मानना है कि गाजीपुर का उत्तरी भाग सदियाबाद, पचोतर, जोहराबाद,लक्नेश्वर एक समय मे भरो के अधीन था ! भरो का एक सरदार जोहराबाद मे रहता था ! एक बार उस सरदार ने लक्नेश्वर डीह को उजाड़ दिया था ! लक्नेश्वर का किला भरो के अधिकार मे था ! आज से सात सौ वर्ष पहले अन्य जातियों कि अपेक्षा अदिक भू-भाग पर भरो का अधिकार था !

डॉ. ओल्धम कहते है कि बुद्ध काल के अवनति के समय भर और सायोरी इस देश पर शासन करते थे ! परन्तु कालांतर मे सव्धर्मियो के विरोध- पक्ष ग्रहण करने से नष्ट हो गए ! उस समय इनके सभ्यता का पूर्ण विकाश हो चूका था ! सन् १८७१ ई. मे जजिपुर मे ५६ हज़ार भर थे !

सर हेनरी एलियट का लिखना है कि भर वीर और चतुर कारीगर होते हुए भी नष्ट कर डाले गए इसका मूल कारण यह है कि जब राजपूतो से बलिष्ट जाति यवन, पश्चिमी उत्तरी भारत पर आक्रमण किये, तब राजपूतो को पंजाब आदि स्थान छोड़कर भागना पड़ा! धीरे धीरे मुसलमानों का प्रभुत्व बदने लगा और इन्हें हटना पड़ा ! पश्चिमी राजपूत जब भर राजाओ के यहाँ आये, तब उनकी दशा अच्छी नहीं थी ! भर राजाओ ने उन्हें अपने यहाँ उच्च पदवी दी लेकिन कालांतर मे राजपूतो कि शक्ति बढने पर वो राज्यों मे झगड़ा उत्पन्न करवा दिया और इस बात का फायदा उठा कर वो वहा सत्ता हाशिल कर लिए !

शनिवार, 2 जुलाई 2016

आजमगढ़

मि. डी. एल. ड्रेक ब्राकमेन ने आजमगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे वर्णन करते है कि आर्यों मे से भर भी एक जाति है ! जो कशी,गोरखपुर क्मिस्नरियो मे पाए जाते है ! भर इस जिले मे सन् १९०१ ई मे ६९९६२ थे ! इन के रहने का मुख्य: स्थान देव गाँव, सगरी,मुहम्मदाबाद,घोसी आदि है ! इस जिले मे इस समय अधिक जातिया निवास कर रही है परन्तु एतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध होता कि इस स्थान के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर है !

दिह्दुअर परगना महल मे असिल देव नाम के एक राजभर राज करते थे ! जिसके राज्य के समय के तालाब और किले के खंडहर पाए जाते है ! जिसे अरारा के बचगुटी राजपूत अपने वंश का मानते है ! कौड़िया परगना अरौन जहनियांनपुर मे अयोद्धया राय राजभर राज करते थे ! ये असिल देव के वंसज काहे जाते है ! इस समय निजामाबाद एक प्रशिद्ध स्थान है ! यहाँ के राजा एक समय मे परीक्षक भर थे ! उन्होंने अनवन्क के किले को अपने अधिकार मे कर लिया था ! राजा परीक्षक ने धीरे धीरे भरो कि शक्ति प्रबल कि और पुनः सिकंदरपुर आजमगढ़ परगना पर अधिकार किया ! मि. शोरिंग साहब का उल्लेख है कि आजमगढ़ के भरो का राज्य भी रामचंद्र के राज्य के समय अयोध्या से मिला हुआ था ! इस जाति के लोग बहुत से किले,कोट,खाई,तालाब,कुए,पड़ाव आदि प्राचीन स्मृति छोड़ गए है !

आजमगढ़ जिले मे घोसी के निकट हरवंशपुर उचगवाना के किले के चारो और कुंवर और मघाई नदिया खाई नुमा घेरा बनाया गया है ! ऐसा ही कार्य निजामाबाद परगने मे अमीना नगर (मेहा नगर) के निकट हरिबान्ध है! प्राचीन खंडहरों मे चिरइया कोट भी इन्ही लोगो का है !

गुरुवार, 30 जून 2016

विश्व का दशहरी आम का पहला पेड़

इस समय आम का सीजन है मित्रो मगर आम का मौसम रहे या न रहे ,किन्तु जब भी आपको सफेदा ,हापूस ,नीलम ,चौसा ,दशहरी आदि आम की प्रजातियों का स्मरण आता है तब आपकी रसना बेमौसम भी आम के रसास्वाद से सराबोर होने लगती है / आम आदमी हो या आमदार या उससे भी ख़ास आदमी आम सब में एक सी ललक पैदा करता है / इसीलिए तो आम को फलों का राजा कहा जाता है / आम की प्रजातियों में दशहरी आम बेजोड़ है /क्या आप जानते हैं कि दशहरी आम कि उत्त्पत्ति कैअसे हुई ? आइये आज हम आपको दशहरी आम के प्रादुर्भाव कि कहानी सुनाते हैं / लखनऊ से पश्चिम हरदोई मार्ग पर नगर से तेरह किलोमीटर दूर काकोरी शहीद स्मारक से उत्तर रेलवे की हावडा-अमृतसर लाइन से उस पार डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर दशहरी गाँव है / इस गाँव में ही दो सदियों पुराना आम का पेड़ है जो संसार में दशहरी आम का पहला पेड़ होने का गौरव रखता है / लखनऊ में दशहरी गाँव के ताल्लुकेदारों की दशहरी कोठी है जो झाऊ लाल पुल और कचहरी रोड के बीच में है और दशहरी हॉउस के नाम से प्रसिद्द है / दशहरी हॉउस के वर्तमान नवाब सैयद असर जैदी के अनुसार दशहरी गाँव सहित उसके आसपास का इलाका भरों-राजभरों की संपत्ति था / उन्हीं भर्रो -राज भरों से नवाब के पूर्वजों ने इस पूरे इलाके को खरीद लिया था / इसमें वह दशहरी गाँव भी शामिल था जिसका नामकरण दशहरी आम के जनक दशरथ राजभर या दशरथी राजभर के नाम पर हुआ था / दशरथ नाम का राजभर -भर जाति का किसान था / उसके आम के अपने बाग़ थे / एक बार वह पके आमों को तोड़कर बेचने के लिए तीन आदमियों के साथ जा रहा था / चारों व्यक्ति पके आमों से भरी टोकनियाँ सिर पर रखे जा रहे थे / अचानक आंधी तूफ़ान के साथ तेज वर्षा होने लगी / सिर छुपाने के लिए कहीं सुरक्षित स्थान भी नहीं था / शीघ्र ही उन चारों ने आमों से भरी टोकानियाँ एक साथ एक ही जगह पर उड़ेल कर ऊपर से टोकनी औंधा कर रख दिया / किसी तरह प्राण बचाकर घर पहुंचे / लगातार तेरह दिनों तक वर्षा होती रही / सम्पूर्ण आम सड गए / इन सड़े आमों के ढेर से एक एक करके सभी अंकुरण जमने पर एक साथ निकले / अंकुरण का प्रान्कुरण तथा मूलांकुर संयुक्त रूप से निकला / हवा ,पानी और प्रकाश तीनों के आधार से एक ही विशाल बृक्ष तैयार हुआ / कई किस्मों के आमों के सत्व का मिश्रण एक ही बृक्ष के रूप में हो गया / जहाँ पर वह बृक्ष तैयार हुआ संयोग वश वह भूमि भी दशरथ राजभर के अधिकार में थी / दशरथ राजभर ने स्वयं उस बृक्ष की देखभाल की / समयानुसार आम के उस बृक्ष पर फल आये / आम की मिठास और फलों के आकार की चर्चा सर्वत्र फैलने लगी / अब यह आम भोजों -दावतों में उपहार, तोहफों के रूप में दिया जाने लगा / उस क्षेत्र के ताल्लुकेदारों को भी आम तोहफे के रूप में भेजा गया / कौन लाया यह आम ? राजमहल में चर्चा होने लगी / अरे ! भई ! दशरथी राजभर -भर लाया यह आम / इस प्रकार यह आम दशरथी के नाम से जाना जाने लगा / और फिर दशरथी से आगे निकलता हुआ यह आम दशहरी कहलाने लगा / आजकल इस आम को विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है /यद्यपि इस आम के मिठास और आकार में अब antar होने लगा है किन्तु आज भी इसकी प्रसिद्धि वैसी ही बनी हुई है जैसी की दशरथी राजभर के समय थी / ( पुस्तक -राजभर शोध लेख संग्रह ,लेखक -आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ''राजगुरु'' ,पृष्ठ १६ ,१७ संस्करण २०१० / मेरा यह लेख भारत की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में छप चुका है /)

बुधवार, 29 जून 2016

महाभारत काल मे राजभर
अब तक हम जैसे जान चुके है राजभर का आदिवंश या जड वंश नागवंश था जो आगे चलकर राजभर,भर,राय अदि मे स्थानतरित हो गया।हिंदू पौराणिक ग्रंथ पर गौर करें तो महाभारत में उल्लेखित है कि पांडु पुत्र अर्जुन ने नागकन्या उलूकी से विवाह किया था। अर्जुन और उलूकी के पुत्र अरावन थे, जिनके कई मंदिर दक्षिण भारत में मौजूद हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था ‍और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था।
किंवदंतियों के अनुसार नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। आज भी कश्मीर के बहुत से स्थानों के नाम नागकुल के नामों पर ही आधारित हैं, जैसे अनंतनाग शहर, शेषनाग झील। बाद में नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था।