भारत की मूल नागभारशिव जाति
क्या भरत जाति ही नाग जाति है ? यह प्रश्न अत्यधिक जटिल और उलझन से परिपूर्ण है। इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या करना इतिहासकारो के लिए चुनौतीपूर्ण है। अंग्रेज़ विद्वान स्टैनले राइस अपने ग्रंथ “हिन्दू कस्टम एण्ड देयर ओरिजिन्स” ( Hindu costums and their origins) मे कहते है की द्रविड़ जाति के लोगो ने भारत पर आक्रमण करके यहा के मूल निवासियों को अछूत बनाया और अपनी राजसत्ता कायम की । तदुपरान्त आर्यों ने द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हे शूद्र बनाया और देश पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित किया। इस प्रकार की व्याख्या इतिहास को एक यांत्रिक सिधान्त से साधारणतया जोड़ देती है। आर्य ग्रंथो मे आर्य, द्रविड़ , दास था नागो का उल्लेख बार बार आया है। ये दस और नाग कौन थे? यह प्रश्न भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. आर्य , द्रविड़ , दास और नाग अलग-अलग जातियो या वंशो के नाम है या एक ही वंश के अलग-अलग लोगो के नाम है? साधारण रूप मे ऐसी मान्यता है की ये अलग-अलग वंशो या जातियो के नाम है। यहा हम दसो और नागो के विषय मे अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहते है। इसके पहले आर्य और द्रविड़ के विषय मे इतना ही कहा जा सकता है कि आर्यों का कबीला स्वयं अपने मे ही अंतर वैवाहिक विवाह वाला पघती वाला नही था। वे अकेले “होमोजेनस” (homogeneous) नहीं थे। बल्कि उनकी दो मुख्य धाराये थी। इसे ऋग्वेदिक आर्य था अथर्ववेद आर्य मे विभाजित किया जा सकता है। ऋग्वेदिक आर्य “यज्ञ” मे विश्वास रखते थे। उनके दर्शन परस्पर भिन्न थे। ऋग्वैदिक आर्य मनु को अपनी वंशावली व जन्मदाता मानते थे। द्रविड़ शिव या शिवलिंग के उपासक थे तथा उन्हे अपने वंश का आदि देव मानते थे।
भारत के नाग और दास, नाग देवता को अपने वंश का जन्मदाता मानते थे। वैदिक साहित्य मे दस और नाग को एक ही शब्दावली मे निरूपित किया गया है पर कही-कही भ्रांतियों से नकारा नही जा सकता है। दस शब्द इंडोईर्नियन शब्द “दहक” से संस्कृत रूप बनाया गया है, यह दहक शब्द नागो के एक शक्तिशाली राजा दहक को दस या नाग का पर्यायवाची शब्द बनया गया। ऊपर हम देख चुके कि दिवोदास और उसके पुत्र सुदास को वैदिक ग्रंथो मे भरत वंश का शासक कहा गया है। क्योकि दोनों भरत वंश के प्रबलतम शासको मे से थे और दोनों के नामों मे “दास” लगा हुआ है। अत: निश्चित ही वे दास या नाग वंश से संबन्धित थे।उक्त तथ्य कि संपुषिट्टी डाक्टर भीमराव अंबेडकर कि इन पंक्तियो से कि जा सकती है –
“A Greater Mistake Lies In Differentiating The Dasas From Nagas. The Dasas Are The Same As Nagas; Dasas Is Merely Another Name For Nagas. It Is Not Difficult To Understand How The Nagas Came To Be Called Dasas In The Vadic Literature Dasas Is Sanskritized From Of The Indo-Iranian Word Dahaka. Dahaka Was The Name Of The King Of The Nagas. Consequently The Aryan Called The Nagas After The Name Of Their King Dahaka Which In Its Sanskrit From Became Dasa A Generic Name Applied to All The Nagas.”
(dr. Babasaheb ambedkar writings and speeches vol.7, p. 292)
प्रत्येक नागो के लिए दास उनकी प्रजाति का नाम बन गया। नाग –वंश का वर्णन वेदो मे और पुराणो मे भरा पड़ा है (देखे मेरी पुस्तक – नागभार शिव का इतिहास – एम बी राजभर)। नागो के साथ शिव शब्द कैसे जुड़ गया इसका भी एक लंबा इतिहास है। द्रविड़ जाति के लोगो मे शिव की पूजा होती थी। भरत वंश के लोगो मे शिव की आराधना का प्रचलन उसी प्रकार हुआ जैसे आर्यों ने शिव को या शिवलिंग को पूजना प्रारम्भ किया। शिवलिंग को धरण करने के कारण नाग, कालान्तर मे भारशिव कहलाने लगे। यही भारशिव वंश के लोग भर नाम से भी प्रससिद्ध हुये।
भर शब्द की व्याख्या भारशिव के अर्थ मे करते हुये डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल कहते है की विंध्याचल क्षेत्र को भरहुत, भरदेवल,नागोड और नागदेय भरो को भारशिव सिद्ध करने का अच्छा प्रमाण है। मिर्जापुर, इलाहाबाद तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र भरो के प्रदेश रह चुके है –
“The local tradition at kantit is that long before the “Gaharwars” the fort belonged originally to the Bhar kings. The Bhar king here are evidently a corruption of the bharshiva kings and not the bhar tribe of whose rule in Mirzapur- vindhyachal there is no evidence. The same tradition is repeated the bhardeul (A.S.R. vol. XXI, plates 3 and 4, description at page 4-7) once a magnificent shiva’s temples coverd all ovr the figures of naga(serpent) kings, build near Maughat in the vindhya hills, 25 miled to W.S.W. of Allahabad. It is in the region of bharhut (-bharbhukti) Bhara province. (I heard the name pronounces as bharhut and bharhut and Bharhut. Its original will be Bharbhukti, the bharprovince). We have no historical district of Mirzapur, Allahabad and the neighbourhood. The tradition stands explained if it is taken to refer to the Bharshiva dynasty. The name bhardeul which is by kittoe in whose time it was called the “temple of karkot Nag” evidently support the view that the Bhar here stands for Bharshiva. The place names ‘Nagaudh’ and ‘Nagadiya’ mark the occupation by the Naga kings of bundlkhand, and so does bharhut and also probably Bhardeul.” (HISTORY OF INDIA, 150 A.D.- 350 A.D. BY K.P. JAYASWAL P. 29-30)
इस तरह भर का परिनिष्टिथ संस्कृत नाम भारशिव है। इस युग को कुषाण-युग कहा जाता है, जब भर राय बरेली के शासक थे, (790-990 A.D.) भर राजसत्ता स्थापित करने के महत्वाकांछि थे। भारशिव वंस्तुत: एक जाति का नाम नहीं बल्कि उनकी उपाधि थी। भारशिव विंध्यशक्ति की जन एकता का प्रतीक था। जिसका वर्णन इसी पुस्तक मे आगे किया जाएगा। तीसरी शताब्दी के पूर्वार्ध से प्रारम्भ होता हुआ उत्तर भारत तथा मध्यभारत पर नागवंशियों का राज्य था। शुरू मे नागवंश यहा मथुरा और ग्वालियर मे ही था। पर कालांतर मे शनै : शनै : इसका विस्तार होकर विदर्भ , बुंदेलखंड तक फैलता चला गया । एसी मान्यता है की भर लोग मुख्यता दो कुलो मे बटे हुये थे। एक “शिवभर” तथा दूसरा “राजभर”। शिवभरों का कार्य राजसत्ता से दूर रह कर हाथ मे त्रिशूल लेकर विचरण करना था जबकि राजभर का कार्य राजसत्ता स्थापित कर शासन चलाना था। शिवभर तथा राजभर दोनों ने मिलकर और मुर्घभिषीकित्त होकर विंध्यशक्ति का मजबूत संगठन बनाया। राजभर प्रवरसेन को उसका नेता चुना गया (284 ई.)। गंगा के पवित्र जल की सौगंध खाकर दोनों एक हुये और कहलाए “भारशिव”। भारशीवो का गौरवशाली इतिहास वीरान खंडहर, टीले, एवम मंदिर-स्तूप उनके पराक्रमी अतीत को आज भी जीवित रखे हुये है। शिव-पार्वती की उपासना उनके मंदिरो का प्रबल उदाहरण है। गौतम बुद्ध काल मे भरत वंश के शासक सतनिक परंतप वत्स देश के राजा हुये और यमुना नदी के दक्षिण तरफ इलाहाबाद से तीस मील दूर कौशांबी (वर्तमान कोसम) मे अपनी राजधानी स्थापित किया। परंतप के उपरांत उसका पुत्र उदयन कौशांबी का शासक हुआ। मगध के नागवंशी सम्राट दर्शक की बहन पदमवाती से उसका विवाह हुआ (बिंबिसार की पुत्री )। नागदास जो की नव नागवंशी शासक उदायी का पुत्र था, सुदास तथा दिवोदास की भांति अपने नाम के पीछे दास सब्ध जोड़ लिया था और भरत वंशी उदयन से उसके परस्पर वैवाहिक संबंध थे। उदयन ने अनेक अवसरो पर मगध सम्राट बिंबिसार से युद्ध मंत्रर्णा की थी, और मगध तथा वत्स के राजनैतिक संबंध एवम वैवाहिक संबंध इस तथ्य को पुस्ट करते है की भरत वंश नागवंश की ही दूसरा स्वरूप है। कथासारितसागर तथा प्रियदर्शिका ग्रंथ के अनुसार वत्सराज उदयन तथा मगधराज नागदास (नंदिवर्धन 265-225 B.C.) मे भी गहरी मित्रता थी। एच.के. देव अपने ग्रंथ “उदयन वत्सराज” (कलकत्ता 1919 ई.) मे इस आशय की पुष्टि करते है की भरत वंश तथा नागवंश परस्पर जुड़े हुये है। भरहुत के निर्माण मे बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु का विशेष योगदान रहा है। इसी कारण इतिहासकर भरहुत को भर जाति की अमूल्य धरोहर मानते है।
भारशिव नागवंश से भर शब्द की व्युत्पत्ति की कालगाड़ना तीसरी या चौथी शताब्दी से निरूपित होती है। भवनाग ही भारशिव वंश का प्रबल शासक माना जाता है। पर इस अवधारणा मे उस समय लचिलापन दिखाई देता है जब वैदिक कालीन भरत वंश या नागवंश से भर या बर या बर्र्हई शब्द की व्युत्पत्ति को हम निरूपित करते है। टालमी जिसने सर्वप्रथम 150 ई मे विश्व का मानचित्र प्रस्तुत किया था। तथा अपने भारत भ्रमण के समय उसने भारत का जो मानचित्र बनया , जिसे “इंडियन एंटीक्वयरी, वाल्यूम XIII(1884)मे” “टालमी मैप आफ इंडिया” शीर्षक से प्रकाशित किया गया है, उसमे भरहुत को भारदावती से जोड़ा गया है , और जनरल कनिंघम ने आर्क्योलोजीकल सर्वे आफ इंडिया मे (वाल्यूम IX, pp. 2-4) मे इसे पुष्ट करते हुये कहा है की भरहुत मगध के नागवंशी शासको का बनया हुआ है और इसे भर जय के लोगो की धरोहर कहा जा सकता है। इस धारणा से भर शब्द को और पीछे पाचवी या छठवी शताब्दी ईसा पूर्व मे उल्लेख होने का प्रमाण मिल जाता है। इस प्रकार नागवंश या भरतवंश से आया हुआ भर शब्द, भारशिव वंश से आए हुये शब्द से लगभग नौ सौ वर्ष पुराना है अर्थार्थ भर जाती की उत्पत्ति आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले इस तथ्य से निर्धारित होती है।
भरत वंश का वर्णन वैदिक का मे अनेक बार आया है। हमे यह भी पता है की ऋग्वेद का रचनाकाल 2500 ई . पू. है। इस प्रकार आज से लगभग साढ़े चार हजार वर्ष पहले भरत जाती का प्रारंभिक उल्लेख मिलता है, और उस काल की मूल अन्य जातियो को आर्यों ने बरबर कह कर अपमानित किया है जिसे अंग्रेज़ इतिहासकार भर से भी जोड़ते है।
नागो ने भारत के जिस राजनैतिक चरित्र को पेश किया वह आज मील का पत्थर सिद्ध होता है . अंबेडकर कहते है-
“ The political history of india begins with the rise of a non-Aryan people called Nagas, who were the powerful people, whom the Aryan were unable to conquer, with whom the Aaryan had to make place, and whom the Aryans were compelled to recognize as their equal. Whatever fram and glory india achieved in ancient times in the political field, the credit for it goes intirely to the Non-Aryan Nagas. It is they who made india great and glorious in the annals of the world.
The first landmarks in Indians political history is the imergence of the kingdom of the magalha in Bihar in the year 642 B.C. The founder of this kingdom of Magadha is known by the name of sisunaga and belonged to the Non-Aryan race of Nagas.” (DR. AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES VOL 3, PAGE 267)
“भारत के राजनैतिक इतिहास का प्रारम्भ अनार्यो के उस प्रभावी उभरते हुये नागो को जाता है जो शक्तिशाली लोग थे, जिनको आर्य विजित करने मे असमर्थ थे, जिनके मेल- मिलाप द्वारा ही आर्य यहा निवास कर पाये, और इन नाग लोगो को आर्यों ने अपने समकक्ष स्थापित किया भारत ने प्राचीन समय मे जो भी विश्व मे प्रसिद्धि और गौरव अपने राजनैतिक क्षेत्र मे पाया उसका सम्पूर्ण श्रेय अनार्य नागो को जाता है। ये वही लोग है, जिनहोने विश्व के इतिहासों (annals) मे भारत की महानता और गरिमा को बढ़ाया ।
भारत के राजनैतिक इतिहास के मील का पत्थर सर्वप्रथम 642 ई .पू. के वर्ष मे बिहार के मगध राज्य मे उभरकर सामने आता है , मगध के इस राज्य की स्थापना अनार्य जाती के नागवंशी शिशुनाग ने की.”
राजपूत नृवंश की अनेक जातीय क्षत्रिय कहलाती है, ये क्षत्रिय जातिया आर्यों की क्षत्रिय जातीया नही है। आर्यों की क्षत्रिय जातियो को परशुराम ने समूल नष्ट कर दिया। अत: राजसत्ता का दायित्व नागवंशी या भरतवंशी जातियो ने निभाया। इसी कारण भर जाती को क्षत्रिय जाती भी कहा जाता है। राजपूत युग के निर्माताओ मे भर जाती का प्रमुख स्थान है। शकों था हूणों को पराजित करके उन्होने नवीन क्षत्रिय जातियो मे विलीन कर लिया गया।
इस कथन को की दास ही भरत जाति है और भरत ही नाग जाती है तथा नाग ही द्रविड़ जाती है, डाक्टर अंबेडकर ने इस प्रकार कहा है-
“Thus the Dasa are the same as the Nagas and Nagasare the same as the Dravidians”
भरत जाति के बहुत से लोग कालांतर मे आर्यों से पराजित होने के उपरांत कुरु वंश मे सामील हो गए।
(“It appears that the Bharatas and Purus were merged into the kurus”) – {see—History Of Ancient India p-42 – R.S. TRIPATHI}
भर शब्द भरत जाति से बना है, इस वाक्य को इस प्रकार कहना की भर शब्द भारशिव नागो से बना है, कोई एतिहासिक अंतर नही जान पड़ता है। डाक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ने भारतीय इतिहास मे 115 A.D.- 350 A.D. का काल जोड़कर भारशिव काल कहा है और इस तरह इतिहास मे एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
क्या भरत जाति ही नाग जाति है ? यह प्रश्न अत्यधिक जटिल और उलझन से परिपूर्ण है। इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या करना इतिहासकारो के लिए चुनौतीपूर्ण है। अंग्रेज़ विद्वान स्टैनले राइस अपने ग्रंथ “हिन्दू कस्टम एण्ड देयर ओरिजिन्स” ( Hindu costums and their origins) मे कहते है की द्रविड़ जाति के लोगो ने भारत पर आक्रमण करके यहा के मूल निवासियों को अछूत बनाया और अपनी राजसत्ता कायम की । तदुपरान्त आर्यों ने द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हे शूद्र बनाया और देश पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित किया। इस प्रकार की व्याख्या इतिहास को एक यांत्रिक सिधान्त से साधारणतया जोड़ देती है। आर्य ग्रंथो मे आर्य, द्रविड़ , दास था नागो का उल्लेख बार बार आया है। ये दस और नाग कौन थे? यह प्रश्न भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. आर्य , द्रविड़ , दास और नाग अलग-अलग जातियो या वंशो के नाम है या एक ही वंश के अलग-अलग लोगो के नाम है? साधारण रूप मे ऐसी मान्यता है की ये अलग-अलग वंशो या जातियो के नाम है। यहा हम दसो और नागो के विषय मे अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहते है। इसके पहले आर्य और द्रविड़ के विषय मे इतना ही कहा जा सकता है कि आर्यों का कबीला स्वयं अपने मे ही अंतर वैवाहिक विवाह वाला पघती वाला नही था। वे अकेले “होमोजेनस” (homogeneous) नहीं थे। बल्कि उनकी दो मुख्य धाराये थी। इसे ऋग्वेदिक आर्य था अथर्ववेद आर्य मे विभाजित किया जा सकता है। ऋग्वेदिक आर्य “यज्ञ” मे विश्वास रखते थे। उनके दर्शन परस्पर भिन्न थे। ऋग्वैदिक आर्य मनु को अपनी वंशावली व जन्मदाता मानते थे। द्रविड़ शिव या शिवलिंग के उपासक थे तथा उन्हे अपने वंश का आदि देव मानते थे।
भारत के नाग और दास, नाग देवता को अपने वंश का जन्मदाता मानते थे। वैदिक साहित्य मे दस और नाग को एक ही शब्दावली मे निरूपित किया गया है पर कही-कही भ्रांतियों से नकारा नही जा सकता है। दस शब्द इंडोईर्नियन शब्द “दहक” से संस्कृत रूप बनाया गया है, यह दहक शब्द नागो के एक शक्तिशाली राजा दहक को दस या नाग का पर्यायवाची शब्द बनया गया। ऊपर हम देख चुके कि दिवोदास और उसके पुत्र सुदास को वैदिक ग्रंथो मे भरत वंश का शासक कहा गया है। क्योकि दोनों भरत वंश के प्रबलतम शासको मे से थे और दोनों के नामों मे “दास” लगा हुआ है। अत: निश्चित ही वे दास या नाग वंश से संबन्धित थे।उक्त तथ्य कि संपुषिट्टी डाक्टर भीमराव अंबेडकर कि इन पंक्तियो से कि जा सकती है –
“A Greater Mistake Lies In Differentiating The Dasas From Nagas. The Dasas Are The Same As Nagas; Dasas Is Merely Another Name For Nagas. It Is Not Difficult To Understand How The Nagas Came To Be Called Dasas In The Vadic Literature Dasas Is Sanskritized From Of The Indo-Iranian Word Dahaka. Dahaka Was The Name Of The King Of The Nagas. Consequently The Aryan Called The Nagas After The Name Of Their King Dahaka Which In Its Sanskrit From Became Dasa A Generic Name Applied to All The Nagas.”
(dr. Babasaheb ambedkar writings and speeches vol.7, p. 292)
प्रत्येक नागो के लिए दास उनकी प्रजाति का नाम बन गया। नाग –वंश का वर्णन वेदो मे और पुराणो मे भरा पड़ा है (देखे मेरी पुस्तक – नागभार शिव का इतिहास – एम बी राजभर)। नागो के साथ शिव शब्द कैसे जुड़ गया इसका भी एक लंबा इतिहास है। द्रविड़ जाति के लोगो मे शिव की पूजा होती थी। भरत वंश के लोगो मे शिव की आराधना का प्रचलन उसी प्रकार हुआ जैसे आर्यों ने शिव को या शिवलिंग को पूजना प्रारम्भ किया। शिवलिंग को धरण करने के कारण नाग, कालान्तर मे भारशिव कहलाने लगे। यही भारशिव वंश के लोग भर नाम से भी प्रससिद्ध हुये।
भर शब्द की व्याख्या भारशिव के अर्थ मे करते हुये डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल कहते है की विंध्याचल क्षेत्र को भरहुत, भरदेवल,नागोड और नागदेय भरो को भारशिव सिद्ध करने का अच्छा प्रमाण है। मिर्जापुर, इलाहाबाद तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र भरो के प्रदेश रह चुके है –
“The local tradition at kantit is that long before the “Gaharwars” the fort belonged originally to the Bhar kings. The Bhar king here are evidently a corruption of the bharshiva kings and not the bhar tribe of whose rule in Mirzapur- vindhyachal there is no evidence. The same tradition is repeated the bhardeul (A.S.R. vol. XXI, plates 3 and 4, description at page 4-7) once a magnificent shiva’s temples coverd all ovr the figures of naga(serpent) kings, build near Maughat in the vindhya hills, 25 miled to W.S.W. of Allahabad. It is in the region of bharhut (-bharbhukti) Bhara province. (I heard the name pronounces as bharhut and bharhut and Bharhut. Its original will be Bharbhukti, the bharprovince). We have no historical district of Mirzapur, Allahabad and the neighbourhood. The tradition stands explained if it is taken to refer to the Bharshiva dynasty. The name bhardeul which is by kittoe in whose time it was called the “temple of karkot Nag” evidently support the view that the Bhar here stands for Bharshiva. The place names ‘Nagaudh’ and ‘Nagadiya’ mark the occupation by the Naga kings of bundlkhand, and so does bharhut and also probably Bhardeul.” (HISTORY OF INDIA, 150 A.D.- 350 A.D. BY K.P. JAYASWAL P. 29-30)
इस तरह भर का परिनिष्टिथ संस्कृत नाम भारशिव है। इस युग को कुषाण-युग कहा जाता है, जब भर राय बरेली के शासक थे, (790-990 A.D.) भर राजसत्ता स्थापित करने के महत्वाकांछि थे। भारशिव वंस्तुत: एक जाति का नाम नहीं बल्कि उनकी उपाधि थी। भारशिव विंध्यशक्ति की जन एकता का प्रतीक था। जिसका वर्णन इसी पुस्तक मे आगे किया जाएगा। तीसरी शताब्दी के पूर्वार्ध से प्रारम्भ होता हुआ उत्तर भारत तथा मध्यभारत पर नागवंशियों का राज्य था। शुरू मे नागवंश यहा मथुरा और ग्वालियर मे ही था। पर कालांतर मे शनै : शनै : इसका विस्तार होकर विदर्भ , बुंदेलखंड तक फैलता चला गया । एसी मान्यता है की भर लोग मुख्यता दो कुलो मे बटे हुये थे। एक “शिवभर” तथा दूसरा “राजभर”। शिवभरों का कार्य राजसत्ता से दूर रह कर हाथ मे त्रिशूल लेकर विचरण करना था जबकि राजभर का कार्य राजसत्ता स्थापित कर शासन चलाना था। शिवभर तथा राजभर दोनों ने मिलकर और मुर्घभिषीकित्त होकर विंध्यशक्ति का मजबूत संगठन बनाया। राजभर प्रवरसेन को उसका नेता चुना गया (284 ई.)। गंगा के पवित्र जल की सौगंध खाकर दोनों एक हुये और कहलाए “भारशिव”। भारशीवो का गौरवशाली इतिहास वीरान खंडहर, टीले, एवम मंदिर-स्तूप उनके पराक्रमी अतीत को आज भी जीवित रखे हुये है। शिव-पार्वती की उपासना उनके मंदिरो का प्रबल उदाहरण है। गौतम बुद्ध काल मे भरत वंश के शासक सतनिक परंतप वत्स देश के राजा हुये और यमुना नदी के दक्षिण तरफ इलाहाबाद से तीस मील दूर कौशांबी (वर्तमान कोसम) मे अपनी राजधानी स्थापित किया। परंतप के उपरांत उसका पुत्र उदयन कौशांबी का शासक हुआ। मगध के नागवंशी सम्राट दर्शक की बहन पदमवाती से उसका विवाह हुआ (बिंबिसार की पुत्री )। नागदास जो की नव नागवंशी शासक उदायी का पुत्र था, सुदास तथा दिवोदास की भांति अपने नाम के पीछे दास सब्ध जोड़ लिया था और भरत वंशी उदयन से उसके परस्पर वैवाहिक संबंध थे। उदयन ने अनेक अवसरो पर मगध सम्राट बिंबिसार से युद्ध मंत्रर्णा की थी, और मगध तथा वत्स के राजनैतिक संबंध एवम वैवाहिक संबंध इस तथ्य को पुस्ट करते है की भरत वंश नागवंश की ही दूसरा स्वरूप है। कथासारितसागर तथा प्रियदर्शिका ग्रंथ के अनुसार वत्सराज उदयन तथा मगधराज नागदास (नंदिवर्धन 265-225 B.C.) मे भी गहरी मित्रता थी। एच.के. देव अपने ग्रंथ “उदयन वत्सराज” (कलकत्ता 1919 ई.) मे इस आशय की पुष्टि करते है की भरत वंश तथा नागवंश परस्पर जुड़े हुये है। भरहुत के निर्माण मे बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु का विशेष योगदान रहा है। इसी कारण इतिहासकर भरहुत को भर जाति की अमूल्य धरोहर मानते है।
भारशिव नागवंश से भर शब्द की व्युत्पत्ति की कालगाड़ना तीसरी या चौथी शताब्दी से निरूपित होती है। भवनाग ही भारशिव वंश का प्रबल शासक माना जाता है। पर इस अवधारणा मे उस समय लचिलापन दिखाई देता है जब वैदिक कालीन भरत वंश या नागवंश से भर या बर या बर्र्हई शब्द की व्युत्पत्ति को हम निरूपित करते है। टालमी जिसने सर्वप्रथम 150 ई मे विश्व का मानचित्र प्रस्तुत किया था। तथा अपने भारत भ्रमण के समय उसने भारत का जो मानचित्र बनया , जिसे “इंडियन एंटीक्वयरी, वाल्यूम XIII(1884)मे” “टालमी मैप आफ इंडिया” शीर्षक से प्रकाशित किया गया है, उसमे भरहुत को भारदावती से जोड़ा गया है , और जनरल कनिंघम ने आर्क्योलोजीकल सर्वे आफ इंडिया मे (वाल्यूम IX, pp. 2-4) मे इसे पुष्ट करते हुये कहा है की भरहुत मगध के नागवंशी शासको का बनया हुआ है और इसे भर जय के लोगो की धरोहर कहा जा सकता है। इस धारणा से भर शब्द को और पीछे पाचवी या छठवी शताब्दी ईसा पूर्व मे उल्लेख होने का प्रमाण मिल जाता है। इस प्रकार नागवंश या भरतवंश से आया हुआ भर शब्द, भारशिव वंश से आए हुये शब्द से लगभग नौ सौ वर्ष पुराना है अर्थार्थ भर जाती की उत्पत्ति आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले इस तथ्य से निर्धारित होती है।
भरत वंश का वर्णन वैदिक का मे अनेक बार आया है। हमे यह भी पता है की ऋग्वेद का रचनाकाल 2500 ई . पू. है। इस प्रकार आज से लगभग साढ़े चार हजार वर्ष पहले भरत जाती का प्रारंभिक उल्लेख मिलता है, और उस काल की मूल अन्य जातियो को आर्यों ने बरबर कह कर अपमानित किया है जिसे अंग्रेज़ इतिहासकार भर से भी जोड़ते है।
नागो ने भारत के जिस राजनैतिक चरित्र को पेश किया वह आज मील का पत्थर सिद्ध होता है . अंबेडकर कहते है-
“ The political history of india begins with the rise of a non-Aryan people called Nagas, who were the powerful people, whom the Aryan were unable to conquer, with whom the Aaryan had to make place, and whom the Aryans were compelled to recognize as their equal. Whatever fram and glory india achieved in ancient times in the political field, the credit for it goes intirely to the Non-Aryan Nagas. It is they who made india great and glorious in the annals of the world.
The first landmarks in Indians political history is the imergence of the kingdom of the magalha in Bihar in the year 642 B.C. The founder of this kingdom of Magadha is known by the name of sisunaga and belonged to the Non-Aryan race of Nagas.” (DR. AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES VOL 3, PAGE 267)
“भारत के राजनैतिक इतिहास का प्रारम्भ अनार्यो के उस प्रभावी उभरते हुये नागो को जाता है जो शक्तिशाली लोग थे, जिनको आर्य विजित करने मे असमर्थ थे, जिनके मेल- मिलाप द्वारा ही आर्य यहा निवास कर पाये, और इन नाग लोगो को आर्यों ने अपने समकक्ष स्थापित किया भारत ने प्राचीन समय मे जो भी विश्व मे प्रसिद्धि और गौरव अपने राजनैतिक क्षेत्र मे पाया उसका सम्पूर्ण श्रेय अनार्य नागो को जाता है। ये वही लोग है, जिनहोने विश्व के इतिहासों (annals) मे भारत की महानता और गरिमा को बढ़ाया ।
भारत के राजनैतिक इतिहास के मील का पत्थर सर्वप्रथम 642 ई .पू. के वर्ष मे बिहार के मगध राज्य मे उभरकर सामने आता है , मगध के इस राज्य की स्थापना अनार्य जाती के नागवंशी शिशुनाग ने की.”
राजपूत नृवंश की अनेक जातीय क्षत्रिय कहलाती है, ये क्षत्रिय जातिया आर्यों की क्षत्रिय जातीया नही है। आर्यों की क्षत्रिय जातियो को परशुराम ने समूल नष्ट कर दिया। अत: राजसत्ता का दायित्व नागवंशी या भरतवंशी जातियो ने निभाया। इसी कारण भर जाती को क्षत्रिय जाती भी कहा जाता है। राजपूत युग के निर्माताओ मे भर जाती का प्रमुख स्थान है। शकों था हूणों को पराजित करके उन्होने नवीन क्षत्रिय जातियो मे विलीन कर लिया गया।
इस कथन को की दास ही भरत जाति है और भरत ही नाग जाती है तथा नाग ही द्रविड़ जाती है, डाक्टर अंबेडकर ने इस प्रकार कहा है-
“Thus the Dasa are the same as the Nagas and Nagasare the same as the Dravidians”
भरत जाति के बहुत से लोग कालांतर मे आर्यों से पराजित होने के उपरांत कुरु वंश मे सामील हो गए।
(“It appears that the Bharatas and Purus were merged into the kurus”) – {see—History Of Ancient India p-42 – R.S. TRIPATHI}
भर शब्द भरत जाति से बना है, इस वाक्य को इस प्रकार कहना की भर शब्द भारशिव नागो से बना है, कोई एतिहासिक अंतर नही जान पड़ता है। डाक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ने भारतीय इतिहास मे 115 A.D.- 350 A.D. का काल जोड़कर भारशिव काल कहा है और इस तरह इतिहास मे एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
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